नजर बांधने का इंतखाब अच्छा, तेरे नाम पे ये पैगाम अच्छा। बिलासपुर दौरे पर हिमाचल के मुख्यमंत्री सुखविंदर सुक्खू ने सियासी सुख की दरकार को पूरा करने का आश्वासन दिया और इस तरह मंत्रिमंडल विस्तार के लाग लपेट से हट कर जिला का नाम आया। बिलासपुर से मंत्रिमंडल का रास्ता यूं तो शिमला से दूर नहीं है, फिर भी राजनीति के अपने घुमाव व पेंच रहे हैं। ऐसे में मुख्यमंत्री की ओर से आया संकेत क्षेत्रीय राजनीति के आयाम को पैगाम दे रहा है। ये सुर्खियां जितनी सहजता से विधायक राजेश धर्माणी के सफर से मुखातिब होती हैं, उतनी ही आसानी से आगामी लोकसभा चुनाव की राजनीतिक तैयारियों को इंगित करती हैं। हिमाचल की सत्ता के अगले मुकाम पर सरकार अपने काम पर रही है, लेकिन लोकसभा चुनाव तफतीश करेंगे कि अंततरू कांग्रेस चली कितने कोस। लोकसभा चुनाव की दूरियों को पाटने के लिए दरियां नहीं, दिल मिलाने होंगे और इसी की शुरुआत में बिलासपुर की खनक पूरे हमीरपुर संसदीय क्षेत्र की नब्ज पर हाथ रख रही है। यह कोई अचंभा भी नहीं कि मंत्रिमंडल की उदारता में बिलासपुर का चेहरा नजर आ रहा है, लेकिन सियासत के संतुलन का इंतखाब कोशिश कर रहा है। कहना न होगा कि अकेले हमीरपुर संसदीय क्षेत्र के लिए मंत्रिमंडल में जगह सुनिश्चित करके चुनावी पारी पूरी हो जाएगी, बल्कि साथ लगते कांगड़ा संसदीय क्षेत्र का राजनीतिक सूनापन कब से रूठा पड़ा है।
बेशक हमीरपुर की वकालत में बिलासपुर का सिक्का काम आएगा, लेकिन सरकार में पहले से मुख्यमंत्री व उपमुख्यमंत्री के दर्जे में यह संसदीय क्षेत्र, हिमाचल व केंद्र की सत्ता का मर्ज भी बन रहा है। यह इसलिए भी क्योंकि राज्य से एकमात्र केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर को यहीं से पंजा लड़ाना है या इसलिए भी क्योंकि भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा को भी अपना कद आजमाना है। जिस मंडी में पूर्व मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर की सियासी जिद्द पारंगत हुई उससे मुलाकात न भी सही, लेकिन मंत्रिमंडल में छाए शिमला संसदीय क्षेत्र को राजनीति औकात बतानी और बनानी है। सरकार के अपने प्लस हो सकते हैं, लेकिन मंत्रिमंडल के माइनस में अटकी कांगड़ा की सांसों की फितरत बीमार मरीज से भिन्न नहीं है। यहां मसला राजनीतिक परंपराओं का है और सत्ता के प्रतिनिधित्व का भी। यह इसलिए भी क्योंकि मुख्य संसदीय सचिवों की सत्ता में पारी पर, अदालती आशंकाएं निर्णायक मोड़ पर खड़ी हैं और अगर फैसला प्रतिकूल असर ले कर आता है, तो राज्य सरकार में क्षेत्रीय भागीदारी का ईनाम फिर से प्रश्र खड़े करेगा।
हालांकि मंत्रिमंडल विस्तार की संभावना में दाल बांटने के मुहूर्त का किसी को कोई अनुमान नहीं, फिर भी लोकसभा के चुनावों ने राजनीतिक पांत तो बिछा दी है। सत्ता में मंत्री और सत्ता के कैबिनेट रैंक में बंटे ओहदों की भरपूर चमक के बावजूद, जिलों के अपने बागीचों में उगती रही सियासी धूप को नजरअंदाज करने का नकारात्मक पक्ष हमेशा रहेगा। ऐसे में बिलासपुर तक पहुंच रहा कैबिनेट विस्तार क्या कांगड़ा जिला तक भी पहुंचेगा। क्या फिर से राजनीतिक वरिष्ठता को मंत्रिमंडल विस्तार स्वीकार करेगा या नई पौधशाला से कुछ नए चेहरों को प्राथमिकता मिलेगी। जो भी हो, होना है तो लोकसभा चुनाव से पूर्व ही विस्तार करना होगा, वरना खेत में पहले ही भाजपा नामी चिडिया मौजूद है। यहां घात-प्रतिघात की सियासत के लिए वर्तमान दौर नाजुक समझा जा रहा है और यह भी कि बतौर मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह के लिए अपनी सरकार के मुआयने में लोकसभा चुनाव काफी कुछ सिद्ध करेंगे। कांग्रेस वैसे भी राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा के सामने नए विचार, नए आकार और अस्तित्व के प्रसार के साथ चुनौती बढ़ा रही है, तो हिमाचल में सत्ता के दम पर यही चुनाव समीक्षा करेगा। बहरहाल राजेश धर्माणी के समीप मंत्रिमंडल विस्तार की अटकलों को स्पष्टता से देखने की वजह अगर मजबूत होती है, तो आगे चलकर यही पैगाम कांगड़ा के कुछ चेहरों को खुश कर सकता है, लेकिन उस स्थिति में शायद हमीरपुर संसदीय क्षेत्र के अन्य नेताओं के लिए सत्ता की ओर से रेड सिग्रल मिल चुका होगा।