
क्या अर्द्धराज्य दिल्ली में राष्ट्रपति शासन लगाया जा सकता है? यह स्थिति 2014 में भी आई थी। तब आम आदमी पार्टी (आप) की अल्पमत सरकार थी और कांग्रेस के बाहरी समर्थन पर आश्रित थी। मुख्यमंत्री केजरीवाल ही थे। वह जनलोकपाल बिल पेश करने की जिद पर थे, लेकिन उसे रोका जा रहा था। नतीजतन 49 दिन की केजरीवाल सरकार ने इस्तीफा दे दिया और दिल्ली में राष्ट्रपति शासन चस्पां कर दिया गया। अब 2024 में स्थितियां और राजनीतिक समीकरण बिल्कुल भिन्न हैं। दिल्ली विधानसभा में ‘आप’ और केजरीवाल के पक्ष में 62 विधायकों का प्रचंड बहुमत है। कुल विधायक 70 होते हैं। ऐतिहासिक जनादेश वाली, विश्वास मत प्राप्त, सरकार कार्यरत है। बेशक मुख्यमंत्री केजरीवाल प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की हिरासत में बीते 10 दिन से हैं, लेकिन उन्होंने और ‘आप’ प्रवक्ताओं ने बार-बार दोहराया है कि मुख्यमंत्री जेल से ही सरकार चलाएंगे। बेशक संविधान और कानून इस संदर्भ में खामोश हैं कि भ्रष्टाचार का आरोपित और हिरासत में कैद एक मुख्यमंत्री सलाखों के पीछे से ही सरकार चला सकता है अथवा नहीं। संविधान कई मामलों में खामोश है। शायद हमारे संविधान के रचनाकारों ने ऐसी स्थितियों की कल्पना ही नहीं की होगी! लेकिन इस तरह सरकार चलाने में कई व्यावहारिक और संवैधानिक बाधाएं तो आती हैं। संवैधानिक पद पर बैठे राजनेता की नैतिकता का भी कोई तकाजा है। ‘आप’ नेताओं की जो जिद है, वह असमर्थनीय और प्रतिकूल है। हिरासती मुख्यमंत्री किसी विचाराधीन सरकारी आदेश को अपनी पत्नी और वकील से भी साझा नहीं कर सकते। मुख्यमंत्री केजरीवाल के जो आदेश, उनके मंत्रियों ने, सार्वजनिक तौर पर पढ़े हैं, उन्हीं पर सत्ता के गलियारों में चर्चाएं जारी हैं कि क्या वे मुख्यमंत्री केजरीवाल ने ही जारी किए थे? क्या मुख्यमंत्री ऐसा कर सकते हैं? हिरासत में मुख्यमंत्री कोई बैठक तक नहीं कर सकते या आदेश की किसी फाइल पर हस्ताक्षर नहीं कर सकते।
एक साथ तीन से अधिक मुलाकाती हिरासती मुख्यमंत्री से मिल नहीं सकते। कैबिनेट की बैठक बुलाने का आदेश नहीं दे सकते। यदि उपराज्यपाल या मुख्य सचिव मुख्यमंत्री के विचारार्थ कोई फाइल भेजते हैं, तो उसे केजरीवाल तक कौन पहुंचाएगा? गोपनीयता भंग होने के आसार पूरे हैं। लिहाजा इस संदर्भ में उपराज्यपाल विनय कुमार सक्सेना का हालिया बयान बेहद महत्वपूर्ण और रणनीतिक है। संभव है कि भारत सरकार के स्तर पर यह विचाराधीन है कि क्या दिल्ली में राष्ट्रपति शासन की स्थितियां बन चुकी हैं? क्या दिल्ली सरकार में संवैधानिक मशीनरी अस्थिर हो गई है? अनुच्छेद 239-बी पर भी बहस शुरू हो चुकी है कि क्या राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू दिल्ली सरकार से संबंधित अनुच्छेद को बर्खास्त कर सकती हैं? फिलहाल स्थितियां मुख्यमंत्री केजरीवाल के पक्ष में हैं कि यदि वह अपने पद से इस्तीफा देते हैं, तो उपराज्यपाल वैकल्पिक मुख्यमंत्री के लिए उनकी पसंद जानने की कोशिश कर सकते हैं। यदि सरकार बर्खास्त कर दी गई, तो ‘आप’ और सरकार के भीतर मुख्यमंत्री बनने की होड़ मच सकती है। ‘आप’ के नेता कोई संत नहीं हैं। फिलहाल मौजूदा सरकार के लिए फरवरी, 2025 तक का जनादेश है। बहुमत की सरकार को बर्खास्त करना भाजपा के राजनीतिक पक्ष में भी नहीं होगा। ईडी, आयकर और सीबीआई को लेकर विपक्षी गठबंधन लगातार शक्ति-प्रदर्शन कर रहा है। कांग्रेस से आयकर विभाग ने कुल 3567 करोड़ रुपए का कर और जुर्माना जमा कराने का नया नोटिस भेजा है। ये दंड 1994-95, 2017-18 से 2020-21 के सालाना आयकर से जुड़ा है। यह कोई सामान्य राशि नहीं है। कांग्रेस इसे ‘टैक्स टेररिज्म’ के तौर पर पेश कर राजनीति करना चाहती है। बहरहाल केजरीवाल सरकार पर ईडी का फंदा कसता जा रहा है। एजेंसी ने बीते कल एक और मंत्री कैलाश गहलोत से 5 घंटे की लंबी पूछताछ की। वह भी शराब नीति का मसविदा बनाने वाले मंत्री-समूह में शामिल थे। बहरहाल दिल्ली में राष्ट्रपति शासन चस्पां करना लोकसभा चुनाव के दौरान तो मुश्किल है। हालांकि शीर्ष स्तर पर चुनाव आयोग दखल नहीं दे सकता।