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इतना घातक है प्रदूषण

वायु प्रदूषण से डायबिटीज (मधुमेह) का खतरा 22 फीसदी बढ़ रहा है। यह दिल्ली और चेन्नई के करीब 12,000 लोगों पर किए गए प्रयोग और शोध का निष्कर्ष है। अध्ययन के शोधकर्ताओं में शामिल मद्रास डायबिटीज रिसर्च फाउंडेशन के अध्यक्ष डॉ. वी. मोहन के अनुसार, यह अध्ययन आंखें खोल देने वाला है, क्योंकि अब मधुमेह के कारणों का एक नया आयाम खुल गया है। उनके मुताबिक, प्रदूषण के पीएम 2.5 में सल्फेट, नाइटे्रट, भारी धातुओं और कार्बन के सूक्ष्म कण होते हैं, जो रक्त-वाहिकाओं की परत को नुकसान पहुंचा सकते हैं। धमनियों को सख्त करके रक्तचाप बढ़ा सकते हैं। ये कण वसा-कोशिकाओं में जमा हो सकते हैं। सूजन पैदा कर सकते हैं और सीधे हृदय की मांसपेशियों पर भी हमला कर सकते हैं। बढ़ते वायु प्रदूषण के कारण शहरी भारत में गर्भ के दौरान भी डायबिटीज के मामले सामने आए हैं। एक और चिकित्सीय शोध किया गया है, जिसका निष्कर्ष है कि प्रदूषित हवा से 56 फीसदी तक पार्किन्सन का रोग बढ़ जाता है। यह शोध एक अमरीकी संस्था ने किया है। यह अध्ययन करीब 90,000 रोगियों पर किया गया है। इस बीमारी में हाथ-पैर तो कांपने ही लगते हैं, लेकिन मस्तिष्क पर भी प्रभाव पड़ते हैं। आदमी लडखड़ाने लगता है, सुनने की शक्ति क्षीण हो जाती है। भारत में फिलहाल पार्किन्सन की बीमारी प्रति एक लाख में 0.5 लोगों को ही है, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि अगले 10 साल में यह संख्या 25 फीसदी से अधिक बढ़ सकती है।
चूंकि राजधानी दिल्ली देश का सबसे प्रदूषित शहर है, लिहाजा यहां के बाशिंदों की उम्र, वायु प्रदूषण के कारण ही, औसतन 11.9 वर्ष घट जाती है। यानी इतने साल पहले मौत दिल्लीवालों की दहलीज पर आ जाती है। यह अध्ययन भी किया गया है। दिल्ली में आजकल वायु गुणवत्ता सूचकांक 400 को छूने वाला है, जो एक गंभीर स्थिति है। सामान्य प्रदूषण 100 तक झेला जा सकता है। उसके बाद खतरनाक और फिर गंभीर स्थिति आती है। दो-तीन दिन पहले दिल्ली विश्वविद्यालय के एक कॉलेज के आसपास का वायु गुणवत्ता सूचकांक 999 दर्ज किया गया, जो किसी गैस चैंबर से भी भयावह है। दिल्ली ऐसा महानगर है, जहां देश के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, संसद और सर्वोच्च अदालत हैं। विदेशों के दूतावास और राजनयिक भी हैं। दिल्ली भारत का हृदय है और यहीं प्रदूषण की जानलेवा समस्या हर साल उभरती है और तीन माह तक राजधानी प्रदूषण की परत में घिरी रहती है। दिल्ली की स्थानीय सरकार आम आदमी पार्टी (आप) के प्रशासन में है।
अरविंद केजरीवाल मुख्यमंत्री हैं। जब तक पंजाब में ‘आप’ सत्तारूढ़ नहीं हुई थी, तब तक पराली जलाने के मुद्दे पर खूब प्रलाप किया जाता था। पंजाब में ‘आप’ सरकार के करीब पौने दो साल के कार्यकाल के बावजूद पराली जलाने के हजारों मामले आज भी आ रहे हैं। पराली पंजाब में ही नहीं, हरियाणा में भी खूब जलाई जाती है, क्योंकि हरियाणा भी बुनियादी तौर पर कृषि प्रधान राज्य है। पराली जलाने का धुआं हवा के साथ उड़ कर दिल्ली तक पहुंचता है और यहां हवा जहरीली होने लगती है। राजधानी के आसपास के इलाके भी प्रदूषित होने लगते हैं। आश्चर्य है कि अदालतों ने बार-बार सरकारों को फटकार लगाई है, सवाल पूछे हैं, लेकिन हर साल हवा जहरीली ही रहती है। न्यायाधीश भी वही प्रदूषित वायु कुछ न कुछ झेलते ही होंगे। सरकार के हुक्मरानों को दंडित क्यों नहीं किया जा सकता? प्रदूषण का प्रभाव इतना गहरा और घातक होता है कि मानवीय फेफड़े काले हो जाते हैं। बहरहाल प्रदूषण का एक अकेला कारण कुछ भी नहीं है और न ही केजरीवाल का अकेला दायित्व है। भारत सरकार भी इसका स्थायी हल ढूंढे।

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