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आइए क्रिप्टो-क्रिप्टो खेलें

ऐसा साबित होने लगा है क्रिप्टो के जाल में तड़प रही मछलियों के शिकारी सरकारी कार्यालयों के कर्मचारी-अधिकारी भी होने लगे हैं। अब तक हुई डेढ़ दर्जन गिरफ्तारियों के सुराग प्रदेश की छवि में इतना तो घर कर रहे हैं कि हिमाचल के दफ्तरी माहौल में अवांछित धनोपार्जन के अड्डे विकसित हो रहे हैं। कहीं पेपर लीक मामले ने यही सिद्ध किया था कि संबंधित दफ्तर नियुक्तियों के मजमून में हाथ रंगने का कौशल जानते हैं, तो कहीं सिपाहियों की भर्ती में वर्दी बेनकाब हुई है। बेशक अब चोर-सिपाही की दौड़ में कई काले कलूटे नजर आ रहे हैं, लेकिन क्रिप्टो-क्रिप्टो के खेल में 2500 करोड़ का अवैध निवेश बता रहा है कि प्रदेश के नागरिक जिस वसंत का पीछा कर रहे हैं, वहां कई सांपनाथ घूम रहे हैं। यह सारा निवेश सरकारी दफ्तर की पलकों के नीचे न भी हुआ हो, लेकिन गिरफ्तारियां बता रही हैं कि सार्वजनिक क्षेत्र में काम करने वालों के पास अब या तो निवेश के लिए अतिरिक्त धन उपलब्ध है या उनके पास ऐसी किसी लूट में जौहर दिखाने का हुनर विकसित हो चुका है। जिन पांच हजार कर्मियों ने क्रिप्टो करंसी के नाम पर पैसा लगाया, वे कलाकार थे या जिस आइडिया ने इन्हें फुसलाया वह घुसपैठ कर दिया, लेकिन मानना पड़ेगा कि सरकारी नौकरी में धन जाया करने के स्रोत हैं या वेतन-भत्ते इस कद्र बढ़ रहे है कि काम के वक्त मुलाजिम नई रोटियां सेंकने के लिए आर्थिक लाभ के नित नए चूल्हे खोज रहे हैं। क्रिप्टो करंसी घोटाला दरअसल देवकी नंदन खत्री के उपन्यासों की तरह कई गोपनीय व गुप्त रहस्य खोल रहा है जहां सरकारी दफ्तरों में काम का एक पैटर्न दिखाई दे रहा है। इस घोटाले की जड़ों ने सरकारी दफ्तर की मिट्टी तक पकड़ बना रखी है, तो इसे अलग-अलग संदर्भों में समझना होगा।
यहां सरकारों की प्राथमिकता में केवल सरकारी कर्मचारियों को पूजने की प्रथा से भी नैतिक सवाल पूछे जाने चाहिएं, क्योंकि राज्य की बजटीय व्यवस्था का आधे से ज्यादा हिस्सा सिर्फ अपने कर्मचारियों के वेतन-भत्तों तथा पेंशन भुगतान में ही जा रहा है। करीब पांच लाख सरकारी कर्मचारी तथा सेवानिवृत्त लोगों के आर्थिक हितों की रखवाली करते राज्य ने ऐसी वित्तीय व्यवस्था तो बना ही दी, जहां लाभ की सारी किश्तियां एकतरफा सफर पर रहती हैं। दूसरी ओर निजी क्षेत्र के पच्चीस लाख लोग कारोबार या नौकरी करके यह अपेक्षा रखते हैं कि हिमाचल अपने संसाधनों से काम करने के माहौल को बेहतर बनाए। अगर ओल्ड पेंशन से सरकारी कर्मचारी के जीवन की सुरक्षा तय होती है, तो पच्चीस लाख रोजगार के अवसर जोत रहे निजी क्षेत्र के लोगों को सरकार का क्या संदेश है। जाहिर तौर पर क्रिप्टो करंसी का घोटाला हो या ऑनलाइन ठगी के बढ़ते मामले, इन सभी में सरकारी धन से सुरक्षित लोग अपना आवरण बढ़ाते पाए गए हैं। यह विडंबना है कि हिमाचल में एक ऐसा नागरिक समाज विकसित हो चुका है जो राज्य की तस्वीर में किसी तरह का शुल्क तो नहीं चुकाना चाहता, लेकिन सार्वजनिक खजाने के दम पर जिंदगी का हर कदम उठाना चाहता है। यही कदम उसे धन कमाने या निवेश की नई राहें खोजने को प्रेरित करते हैं। समाज की समृद्धि से राज्य की आर्थिक स्थिति को बल मिले, इसके ऊपर सरकारों को कुछ फैसले लेने चाहिएं अन्यथा मध्यमवर्गीय लोगों के लिए थोड़ा सा लालच भी घातक हो सकता है। क्रिप्टो घोटाले में भी हिमाचल की निवेश प्रवृत्ति का गलत फायदा उठाया गया है, लेकिन इस तरह के लुभावने कार्यों में कर्मचारियों की संलिप्तता का पर्दाफाश आर्थिक अपराधों की स्थली बना रहा है। अगर हिमाचली लोगों के पास अधिक धन है, तो सरकार, सरकार के कई उपक्रम तथा शहरी निकाय बांड निकाल कर, जनता के धन से अपने ऋण के मार्फत उन्हें कमाई लायक ब्याज या बढ़त अदा कर सकते हैं। प्रदेश सरकार को चंडीगढ़ की तर्ज पर ऊना के आसपास एक बड़ा सेटेलाइट टाउन बसा कर जनता को धन निवेश करने का अवसर देना चाहिए ताकि हिमाचल निर्माण में अप्रत्यक्ष सहयोग मिल सके।

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