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भू-धंसाव प्रभावित जोशीमठ में कराया जा रहा जिओ टेक्निकल सर्वे

50 मीटर से अधिक गहराई पर भी नहीं मिली पक्की चट्टान

चमोली। भू-धंसाव के करीब 11 महीने बाद एक बार फिर से उत्तराखंड के जोशीमठ शहर का जिओ टेक्निकल सर्वे शुरू हुआ है। मुंबई बेस नीदरलैंड की फुगरो कंपनी ने जोशीमठ नगर के विभिन्न वार्डों में भू-गर्भीय सर्वे का काम शुरू कर दिया है। कंपनी भू-धंसाव से प्रभावित बड़े भाग में ड्रिलिंग कर रही है, ताकि जोशीमठ के नीचे की पक्की चट्टान का गहन अध्ययन किया जा सके।
उत्तराखंड सरकार देश-विदेश के वैज्ञानिकों की मदद से जोशीमठ की केयरिंग कैपेसिटी यानी भार-क्षमता को लेकर भू-गर्भीय अध्ययन करा रही है। ऐसे में फुगरो कंपनी के जिओ टेक्निकल सर्वे पर सबकी नजर टिकी हुई है। इस सर्वे के बाद ही जोशीमठ शहर की भार क्षमता की पूरी स्थिति स्पष्ट हो पाएगी।
सर्वे साइट पर मौजूद कार्यदाई संस्था के भू वैज्ञानिक अभिषेक भारद्वाज का कहना है कि अभी तक 50 मीटर से अधिक की कोर ड्रिलिंग हो चुकी है, लेकिन अभी भी पक्की चट्टान नहीं मिली है। सैंपल इकट्ठा कर अध्ययन के लिए मुंबई लैब में भेजे जा रहे हैं।उन्होंने बताया कि इस ड्रिलिंग के दौरान जमीन के अंदर एक ट्यूब डाली जाती है, जिसे आगे 80 मीटर तक ड्रिलिंग करके पक्की चट्टान को ढूंढने की कोशिश की जाएगी। इस काम में दो से तीन महीने लग सकते हैं और उसके बाद रिपोर्ट सार्वजनिक हो सकती है।
उत्तराखंड के चमोली जिले के प्रमुख शहर जोशीमठ में साल 2022 में दिसंबर के महीने में भू-धंसाव की स्थिति सामने आने लगी थी। शहर का एक बड़ा हिस्सा भू-धंसाव की चपेट में आ गया था। मकानों में बड़ी-बड़ी दरारें आ चुकी थी, जो लगातार बढ़ने लगी। सड़कों और खेतों में भी चैड़ी-चैड़ी दरारें देखी गई थी। खतरे की जद में आई कई बिल्डिंगों को तोड़ना तक पड़ा था। कई जगहों पर तो जमीन से पानी का रिसाव तक होने लगा था। इसके बाद प्रशासन ने तत्काल 600 भवनों को तत्काल खाली कराया। तभी से सरकार अलग-अलग एंजेसियों से जोशीमठ का सर्वे करा रही है और जोशीमठ की भार क्षमता जानने का प्रयास कर रही है, ताकि इस शहर को बचाया जा सके। वहीं अब आखिरी बार मुंबई बेस नीदरलैंड की फुगरो कंपनी को भू-गर्भीय सर्वे को जिम्मा दिया गया है, जो अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपेगी।

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