उत्तराखंडनई दिल्लीभ्रष्टाचार

जांच एजेंसियों में भ्रष्टाचार

प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल को समन किया था, ताकि शराब घोटाले के संदर्भ में पूछताछ की जा सके, लेकिन केजरीवाल ने समन को ही गलत तथा राजनीति से प्रेरित करार देते हुए पेश होने से इंकार कर दिया। उन्होंने कुछ सवाल भी पूछे कि जांच एजेंसी ने उन्हें मुख्यमंत्री अथवा आम आदमी पार्टी (आप) के राष्ट्रीय संयोजक के तौर पर बुलाया है। ईडी ने उन्हें ‘गवाह’ या ‘संदिग्ध’ के तौर पर समन भेजा था। भाजपा नेताओं के इन बयानों के मायने क्या हैं कि केजरीवाल को पूछताछ के बाद गिरफ्तार किया जा सकता है, लिहाजा यह समन भाजपा के निर्देशानुसार भेजा गया है! केजरीवाल ने ईडी को लिखे पत्र में यह भी स्पष्ट किया है कि मुख्यमंत्री के नाते उन पर काफी सरकारी दायित्व हैं और पार्टी का राष्ट्रीय नेता होने के नाते राज्यों के पार्टीजनों की अपेक्षा है कि वह चुनाव प्रचार करें। लिहाजा वह ईडी के सामने पेश नहीं होंगे। चूंकि यह समन ही अवैध और अस्पष्ट है, लिहाजा उसे वापस ले लिया जाए। हमारी खबर है कि ईडी केजरीवाल को नया समन भेजेगा। यदि जरूरत पड़ी, तो अदालत का हस्तक्षेप भी मांगा जा सकता है। केजरीवाल ईडी के तीन समन ठुकरा सकते हैं। यदि फिर भी वह पेश नहीं होते हैं, तो ईडी को अगली कार्रवाई के लिए अदालत में ही जाना पड़ेगा। झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को ईडी 5 समन भेज चुका है, लेकिन वह एक बार भी पेश नहीं हुए हैं। आजकल नेताओं ने ईडी के समन को गंभीरता से लेना छोड़ दिया है, क्योंकि सर्वोच्च अदालत का फैसला है कि समन न मानने की स्थिति में ईडी किसी को गिरफ्तार नहीं कर सकता है।
उसके लिए अदालत में आना अनिवार्य है। बहरहाल ईडी के संदर्भ में ही एक घटना राजस्थान में हुई है कि वहां के भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो ने ईडी के एक अधिकारी को 15 लाख रुपए की घूस लेते रंगे हाथों गिरफ्तार कर लिया है। वह अधिकारी इंफाल (मणिपुर) से राजस्थान आया था, ताकि भ्रष्टाचार के एक मामले को रफा-दफा किया जा सके। अब कांग्रेस नेता यह भी सवाल उठा रहे हैं कि छत्तीसगढ़ में जो काले संदूक आ रहे हैं और करोड़ों की धरपकड़ की गई है, उसमें ईडी या सीबीआई की कितनी संलिप्तता है? जांच एजेंसियों में भ्रष्टाचार के कई मामले उजागर हुए हैं। इनसे सरकार और जांच एजेंसियों के प्रति अविश्वास बढ़ रहा है और वे सवालिया होने लगी हैं। आम आदमी की चिंता बढने लगी है कि जिन जांच एजेंसियों को, संविधान के तहत, भ्रष्टाचार की जांच का, जनादेश प्राप्त है, वे खुद ही दागी और कटघरे में मौजूद हैं। बीते दिनों सीबीआई ने 5 करोड़ रुपए के भुगतान मामले में ईडी के एक सहायक निदेशक के खिलाफ मामला दर्ज किया था। कुछ दिन पहले असम पुलिस ने एक सीबीआई अधिकारी को गिरफ्तार किया था, जो एक व्यापारी से पैसे वसूलने की साजिश में जुटा था। बीते साल मई में खुद सीबीआई ने अपने ही चार सब-इंस्पेक्टरों को रिश्वत के आरोप में गिरफ्तार किया था। ऐसे कथित भ्रष्ट मामलों की फेहरिस्त काफी लंबी है। प्रथमद्रष्ट्या माना जा सकता है कि हमारी प्रमुख जांच एजेंसियां भी दूध की धुली नहीं हंै।
यह बेहद गंभीर स्थिति है, लेकिन वे आर्थिक अपराधों को नहीं पकड़ सकतीं और कानूनी निष्कर्ष तक नहीं पहुंच सकतीं, ऐसा मानना गलत है। दिल्ली शराब घोटाले के संदर्भ में सर्वोच्च अदालत ने ही 338 करोड़ रुपए के मुनाफे और सरकारी जनसेवक को कथित घूस दिए जाने की बात अपने फैसले में कही है। हवाला मनी टे्रल की ओर भी संकेत किया है। यदि दिल्ली सरकार के पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया और राज्यसभा सांसद संजय सिंह क्रमशरू 8 माह और 28 दिनों से जेल में हैं और शीर्ष अदालत तक जमानत खारिज होती रही है, तो उस पार्टी के संयोजक और सरकार के मुख्यमंत्री जिम्मेदार क्यों नहीं होंगे? ईडी को इस निष्कर्ष तक पहुंचने के लिए केजरीवाल का पक्ष जानना बेहद जरूरी है। जांच एजेंसियों को दोतरफा लड़ाई का सामना करना है। भ्रष्टाचार बेनकाब होना चाहिए।

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