इजरायल और हमास चार दिन के युद्धविराम पर सहमत करा लिए गए हैं। यह सहमति और मध्यस्थता मानवता के हित में है। युद्ध सिर्फ विध्वंस की भाषा ही जानते हैं। गाजा पट्टी की जंग वीभत्स हो गई थी। लेबनान के हिजबुल्लाह और यमन के हूती आतंकवादी भी युद्ध में कूद पड़े थे और इजरायल पर हवाई हमले कर रहे थे। लगातार 46 दिन के युद्ध और विनाश के बावजूद हमास अस्तित्वहीन नहीं हुआ था। युद्धविराम इसलिए भी अनिवार्य था, ताकि मासूम बंधकों को मुक्त कराया जा सके और गाजा में मानवीय मदद पहुंचाई जा सके। गाजा का ज्यादातर हिस्सा खंडहर बन चुका है। करीब 43,000 इमारतें और अन्य निर्माण ध्वस्त किए जा चुके हैं। 30 स्कूल बर्बाद कर दिए गए हैं और 20 अस्पताल बंद करने पड़े हैं। गाजा से 16 लाख से ज्यादा लोगों को विस्थापित होना पड़ा है। मानवता के लिए यह किसी गंभीर त्रासदी से कम नहीं है। हमास आतंकियों ने भी करीब 8000 रॉकेट इजरायल के शहरों पर दागे हैं और सेना के टैंकों आदि को ‘मलबा’ बना दिया है। बेशक इजरायल की सेना ने हमास के कई अहम ठिकानों को ‘मिट्टी’ कर दिया है, करीब 150 सुरंगों का नेटवर्क भी तोड़ दिया है और कई कमांडरों को ढेर किया है, लेकिन दोनों पक्षों की तरफ 15,300 से अधिक मौतें भी हुई हैं। उन मानवीय चेहरों का क्या कसूर था? इस पूरे संदर्भ में कतर, अमरीका और मिस्र के निर्णायक प्रयासों का आभार है कि इजरायल-हमास के बीच ‘फिलहाल अस्थायी युद्धविराम’ संभव हो सका है। तुर्किए की कोशिशें भी सार्थक साबित हुई हैं। अब समझौते के मुताबिक, हमास कुल 238 बंधकों में से 50 बच्चों, माताओं, बुजुर्ग महिलाओं को मुक्त करेगा। उधर इजरायल अपनी जेलों में बंद 150 फिलिस्तीनी कैदियों को रिहा करेगा।
यह संख्या 300 तक भी जा सकती है, क्योंकि इजरायल कैबिनेट ने ऐसे 300 कैदियों की सूची बनाई है। यदि बंधक और कैदी ईमानदारी से छोड़े गए, तो युद्धविराम की अवधि बढ़ाई भी जा सकती है। अंततरू शांति के स्थिर और टिकाऊ समाधान तक पहुंचा जा सकता है। शांति का यह तो पहला कदम है। सवाल है कि क्या हमास जवाब देगा कि उसके आतंकियों ने बीती 7 अक्तूबर को इजरायल पर अचानक हमला क्यों किया था? क्या वह आतंकवादी हमला नहीं था? आतंकवाद की प्रतिक्रिया में इजरायल को अपनी संप्रभुता की रक्षा करने का क्या अधिकार नहीं है? संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद और विश्व स्वास्थ्य संगठन इन सवालों का जवाब जरूर दें। बेशक युद्धविराम बढ़ाया जा सकता है, लेकिन हमास ने जिन मासूमों का कत्लेआम किया था, उस बर्बर और दानवी अपराध की सजा क्या होगी? यदि यहीं बात समाप्त हो गई, तो हमास को एक और जीवनदान मिलेगा और उसके आतंकी एक सेना की तरह फिर लामबंद हो सकते हैं। तालिबान की तरह हमास भी किसी देश की हुकूमत तक पहुंच सकते हैं। तालिबान की तरह हमास भी चेहरा बदल कर ‘संवैधानिक’ और ‘सियासी’ होने का ढोंग, दुनिया के सामने, रच सकता है। मान्यता भी हासिल कर सकता है, लिहाजा आतंकवाद ही बुनियादी चुनौती है। जी-20 देशों के नेताओं को वर्चुअल तौर पर संबोधित करते हुए भारतीय प्रधानमंत्री मोदी ने आतंकवाद और उसकी गतिविधियों को ‘अस्वीकार्य’ माना है। यह युद्ध का दौर ही नहीं है। रूस-यूक्रेन को भी युद्धविराम की सहमति पर पहुंचाया जाना चाहिए, लेकिन यह प्रयास कौन करेगा?