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क्रिकेट की अनहोनी

टीम इंडिया ‘अजेय चैम्पियन’ नहीं बन सकी। एकदिनी क्रिकेट का विश्व चैम्पियन ऑस्टे्रलिया बना, जो पांच बार इस खिताब को जीत चुका था और फाइनल मुकाबले के दबावों तथा मनोविज्ञान को अच्छी तरह जानता था। टीम इंडिया कई फाइनल मुकाबले खेल चुकी है, लेकिन आखिरी चरण में उसके हाथ-पांव फूलने लगते हैं, नतीजतन 2013 में ‘आईसीसी चैम्पियन्स ट्रॉफी’ जीतने के बाद आज तक टीम इंडिया कोई विश्व-खिताब नहीं जीत पाई है। बेशक ‘विश्व टेस्ट चैम्पियनशिप’ हो या टी-20 मुकाबलों के फाइनल हों, टीम इंडिया की परिणति और नियति ‘उपविजेता’ वाली हो गई है। बेशक टीम इंडिया ने एकदिनी क्रिकेट के विश्व कप में 10 लीग मैच और एक सेमीफाइनल मैच एकतरफा और निरंतर जीते थे, लिहाजा ‘अजेय’ मानना गलत नहीं था। हमने ऑस्टे्रलिया समेत विश्व की तमाम श्रेष्ठ टीमों को पराजित किया। यह कोई तुक्का नहीं था। सर्वश्रेष्ठ बल्लेबाज एवं ‘प्लेयर ऑफ दि टूर्नामेंट’ विराट कोहली (765 रन), सर्वश्रेष्ठ गेंदबाज मुहम्मद शमी (24 विकेट) और बुमराह (20 विकेट) और सर्वश्रेष्ठ कप्तान रोहित शर्मा (597 रन) आदि के सम्मान-पुरस्कार भी हमारे हिस्से आए, लेकिन कुछ तो गलत गणनाएं हुई थीं कि हम ‘विश्व विजेता’ नहीं बन पाए। विश्व के नंबर वन बल्लेबाज आज भी शुभमन गिल हैं और चैथे-पांचवें स्थान पर क्रमशरू विराट कोहली और रोहित शर्मा हैं। सिराज आज भी विश्व के नंबर 2 के गेंदबाज हैं। बल्लेबाजों के वर्ग में पहले पांच स्थान पर ऑस्टे्रलिया का कोई भी बल्लेबाज नहीं है।
टीम इंडिया ने विश्व कप में कुल 3160 रन बनाए हैं। यह भी सर्वाधिक हैं। ये कोई सामान्य आंकड़े नहीं हैं। फिर भी सवाल हो सकता है कि फाइनल में रवीन्द्र जडेजा और कुलदीप यादव की स्पिन गेंदबाजी का वह करिश्मा कहां काफूर हो गया, जो पूरे टूर्नामेंट के दौरान आतंक और आश्चर्य बना हुआ था? सवाल हमारी धीमी बल्लेबाजी पर भी स्वाभाविक है, क्योंकि तीन विकेट गिरने के बाद हमारे बल्लेबाजों ने 20 ओवर में सिर्फ 72 रन ही बनाए? खेल के 40 ओवर में एक भी छक्का नहीं लगा। आखिरी 10 ओवर में 5 विकेट खोकर 43 रन ही बन पाए! सूर्यकुमार यादव अपनी विस्फोटक बल्लेबाजी साबित नहीं कर पाए। दिलचस्प यह है कि बुमराह और शमी ने 47 रन पर ही ऑस्टे्रलिया के 3 विकेट उखाड़ दिए थे, लेकिन उसके बाद ट्रेविस हेड (137 रन) और लाबुशेन (नाबाद 58 रन) की शतकीय साझेदारी ने हमारा सपना ‘छन’ से तोड़ दिया। ‘अजेय चैम्पियन’ बनने की उम्मीदें और सच भी छीन लिए। आघात जरूर लगा है, लेकिन यह निराशा का वक्त नहीं है। इसकी समीक्षा भी खुद हमारे अंतरराष्ट्रीय क्रिकेटरों को करनी चाहिए और आगे बढना चाहिए।
अभी तो हमारी अपनी जमीन पर ‘विश्व विजेता’ ऑस्टे्रलिया के साथ टीम इंडिया को टी-20 की सीरीज खेलनी है। उसके बाद दक्षिण अफ्रीका भी जाना है। 2025 में ‘चैम्पियन्स ट्रॉफी’ प्रतियोगिता विश्व कप से कमतर नहीं है। यह हमारे खिलाडियों की टांग खींचने का भी वक्त नहीं है। टीम इंडिया के 11 चेहरों ने मैदान पर विलक्षणता दिखाई है और भारत के बारे में बड़ी तस्वीर पेश की है। प्रधानमंत्री मोदी ने ठीक ही कहा है कि हमें आज भी अपनी टीम पर गर्व है। हम आज भी टीम के साथ हैं और आगे भी रहेंगे। यह खेल-भावना का संदर्भ और सरोकार है। कमोबेश 19 नवम्बर हमारा दिन नहीं था। इस खेल ने यह भावना पेश की है कि भारत समग्रता में एक राष्ट्र है।

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