
देहरादून। उत्तराखंड एससी एसटी एम्पलाइज फैडरेशन के प्रांतीय वरिष्ठ उपाध्यक्ष पूर्व प्रांतीय महामंत्री शिक्षक एसोसिएशन एवं पूर्व सदस्य उत्तराखंड विद्यालयी शिक्षा परिषद डॉ। जितेंद्र सिंह बुटोइया ने प्रधानाचार्य विभागीय भरती का जमकर विरोध किया है, उन्होंने कहा कि लोक सेवा आयोग उत्तराखंड में 692 पदों का विज्ञापन जारी किया गया है। शिक्षक इन पदों पर पूर्व की भांति शत प्रतिशत विभागीय पदोन्नति की मांग करते आ रहा है।
उन्होंने भर्ती में खामियां गिनाते हुए निरस्त करने को कहा। उन्होंने कहा कि उत्तराखंड बनने के बाद प्रधानाचार्य पदों पर यह पहली विभागीय सीधी भर्ती है। इसके बाद भी इसमें एससी एसटी ओबीसी वर्गों के लिए आरक्षण की व्यवस्था नहीं की गई है। जबकि केंद्रीय विद्यालयों में प्रधानाचार्य की विभागीय भर्तियों में इन वर्गों को आरक्षण देय हैं। प्रधानाचार्य के पद के लिए वर्तमान में 55 प्रतिशत एलटी शिक्षक और 45 प्रतिशत प्रवक्ता पदोन्नति से प्रधानाध्यापक बनते हुए प्रधानाचार्य तक पहुंचते हैं। जबकि इसमें एलटी शिक्षकों सहित लगभग 90 प्रतिशत प्रवक्ताओं को सीधे बाहर कर दिया गया है। विज्ञापन में 50 वर्ष की आयु सीमा के कारण बड़ी संख्या में शिक्षक आवेदन करने से पूर्व ही बाहर हो गये हैं। जबकि केन्द्रीय विद्यालयों में आयु सीमा की बाध्यता नही होती हैं। इसमें बीएड अनिवार्य किया गया है। जबकि पूर्व में प्रवक्ता पद के लिए बीएड की अनिवार्यता नहीं थी। इस कारण बड़ी संख्या में नॉन बीएड शिक्षक भी बाहर हो गये हैं। इसमें स्नातकोत्तर स्तर पर 50 प्रतिशत अंकों की बाध्यता रखी गई है जबकि सीधी भर्ती में आरक्षित वर्गों को यह छूट रहती है। इस कारण 50 प्रतिशत से कम अंक वाले शिक्षक भी बाहर हो गये हैं। इस विज्ञापन के मानकों के दायरे में मात्र 2005-06 बैच के 50 वर्ष से कम आयु के कुछ प्रवक्ता व 2011 बैच के प्रवक्ता आ रहे हैं। जिनकी संख्या मा0शि0 में कार्यरत कुल शिक्षकों का 10ःसे भी कम हैं। इस प्रकार मात्र 10 प्रतिशत से भी कम शिक्षकों में से विभाग के 50 प्रतिशत पदों को भरा जाना अनुचित हैं। इस प्रकार यह विज्ञापन उपर्युक्त कारणों से लगभग 95 फीसदी शिक्षकों के हितों के विरुद्ध है। अतैव मुख्यमंत्री एवं विद्यालयी शिक्षा मंत्री अनुरोध हैं कि प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था व शिक्षकों के हित में उपर्युक्त विज्ञापन को निरस्त करते हुए, प्रधानाचार्य पदों पर पूर्व की भांति सेवा नियमावली 2006 के अनुसार ही विभागीय वरिष्ठता के आधार पर शत-शत पदोन्नति की जाए। 692 के लिए लगभग 26000 शिक्षकों के साथ अन्याय करना यह हमे भी सोचने को कही न कही मजबूर करेगा। 50 प्रतिशत किोटा समाप्त हुआ इसके दुस्परिणाम बाद में आयेंगे। अभी 692 पद खत्म हुए अगली बार 300 फिर 175 फिर 85 बाद में पदोंनति के लिए पद ही नही बचेंगे। सभी के साथ न्याय करना सरकार का कर्तव्य है।