
बांग्लादेश की राजधानी ढाका की सडक़ों पर विद्रोह, आक्रोश और गुस्सा स्पष्ट दिख रहे थे, हिंसा दोतरफा थी, लिहाजा 366 से अधिक लोग मारे गए, नौजवानों को कर्फ्यू की भी परवाह नहीं थी, 15-20 पुलिस कर्मी भी मारे गए, करीब 11000 गिरफ्तारियां की गईं, अनुमान है कि आरक्षण पर छिड़े आंदोलन के दौरान 10 अरब डॉलर से अधिक का नुकसान हुआ है, लेकिन अचानक परिदृश्य तब बदला, जब प्रधानमंत्री शेख हसीना को पद से इस्तीफा देना पड़ा और देश छोड़ कर भागना पड़ा। फिलहाल वह भारतीय वायुसेना के किसी ‘सेफ हाउस’ में हैं। बेशक कॉलेज और विश्वविद्यालय के छात्रों ने आरक्षण के मुद्दे पर आंदोलन का आगाज किया था, लेकिन छात्रों के साथ युवा-शक्ति भी जुड़ गई और शेख हसीना को ‘तानाशाह’ और ‘गैर-लोकतांत्रिक’ करार देते हुए प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देने की मांग लगातार उग्र होती गई। युवाओं की भीड़ में आतंकवादी, उग्रवादी, गद्दार और देशद्रोही भी थे अथवा वे सिर्फ आंदोलनकारी ही थे, शेख हसीना ने इस पर टिप्पणी भी की, तो वे ज्यादा उग्र हो गए। जिस शख्सियत ने प्रधानमंत्री के तौर पर 15 साल तक देश पर शासन किया था, उसे 15 मिनट में ही इस्तीफा देने और देश छोड़ कर चले जाने का फैसला करना पड़ा। सेना प्रमुख ने उन्हें 45 मिनट में ही देश छोड़ कर चले जाने का आग्रह किया और उनके सारे सामान की तलाशी ली गई। अचानक ये हालात किस लोकतंत्र की परिभाषा हैं? बांग्लादेश के राष्ट्रपिता एवं ‘मुक्ति संग्राम’ लडक़र एक नए देश की स्थापना करने वाले शेख मुजीबुर्रहमान की प्रतिमा पर हथौड़े चलाए गए और बुलडोजर से उसे खंडित किया गया, यह कौनसे लोकतांत्रिक संस्कार हैं, जो देश की विरासत और धरोहर को ही ध्वस्त कर रहे हैं? बांग्लादेश में शेख हसीना के तख्तापलट के साथ ही एक और देश में लोकतंत्र की हत्या कर दी गई। हमने श्रीलंका और अफगानिस्तान में भी ऐसे तख्तापलट देखे हैं। वहां भी भीड़ ‘राष्ट्रपति भवन’ के भीतर घुस गई थी। खूब हंगामा मचाया, तोडफ़ोड़ की और लूटपाट मचाई। ढाका में शेख मुजीब के म्यूजियम को भी आग के हवाले कर दिया गया।
बेशक यह लोकतंत्र नहीं, अराजकता और जंगली राजनीति है। शिकायत प्रधानमंत्री से हो सकती है, तो लोग उनसे बात कर सकते हैं। किसी आपत्तिजनक फैसले को अदालत में चुनौती दी जा सकती है। बांग्लादेश की सर्वाेच्च अदालत ने आरक्षण को घटा कर मात्र 7 फीसदी कर दिया था। हालांकि प्रधानमंत्री ने भी आरक्षण को कम करके 5 फीसदी कर दिया था। लोकतंत्र में मारामारी की कोई गुंजाइश नहीं होती। बहरहाल भारत इस समय ऐसे पड़ोसी देशों से घिरा है, जो अस्थिर, दिवालिया और चीनपरस्त हैं। नेपाल में फिर सत्ता बदली है और नए प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली पूरी तरह चीनपरस्त हैं। पाकिस्तान और मालदीव के समूचे हालात ऐसे हैं कि उन्हें चीन का कर्जदार होना ही पड़ता है। भारत के साथ बांग्लादेश की सीमा 4096 किलोमीटर है। असम, त्रिपुरा, मिजोरम, मेघालय और पश्चिम बंगाल सीमावर्ती निकटस्थ भारतीय राज्य हैं, लिहाजा वहां अलर्ट घोषित किया गया है। सर्वदलीय बैठक में भी विदेश मंत्री जयशंकर ने सभी को आश्वस्त किया है कि सीमाएं सुरक्षित हैं। करीब 8000 छात्र बांग्लादेश से वापस आ चुके हैं। करीब 13,000 भारतीय अब भी वहीं हैं, लेकिन उनके लिए हालात ऐसे नहीं हैं कि उन्हें वहां से निकालने का अभियान शुरू किया जाए।
बांग्लादेश के मुद्दे पर सरकार और विपक्ष एकमत हैं। फिलहाल बांग्लादेश में कोई भी सरकार नहीं है। वहां के सेना प्रमुख जनरल वकार उज जमां ‘अंतरिम सरकार’ बनाने के प्रयास कर रहे हैं। इसके अलावा, कट्टरपंथियों पर पाबंदियां हटा ली गई हैं। पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा जिया की भी नजरबंदी समाप्त कर दी गई है। ऐसे देश के भारत पर असर स्वाभाविक और गंभीर हो सकते हैं। करीब 150 करोड़ रुपए रोजाना का आयात-निर्यात प्रभावित होंगे। भारत ने वहां काफी निवेश किया हुआ है। भारत अपने निर्यात में से 12 फीसदी बांग्लादेश को ही करता है। वहां 6000 से अधिक वस्तुओं का निर्यात किया जाता है। कपड़ा, जूट, चमड़ा, फार्मा, चीनी मिट्टी के बर्तन, कृषि उत्पाद आदि बांग्लादेश से आयात किए जाते हैं। बहरहाल वहां सरकार बनना अनिवार्य है और वह कट्टरपंथी दलों की नहीं होनी चाहिए। हालात पर भारत की निगाहें चिपकी हैं। बेहतर यही होगा कि बांग्लादेश में जल्द ही व्यवस्था कायम हो जाए।