
देहरादून । कैंट विधानसभा क्षेत्र कौलागढ़ वार्ड की सड़क व सीवर की समस्याओं को लेकर कांग्रेस ने धरना- प्रदर्शन किया । इस दौरान कौलागढ़ की दो मुख्य समस्याओं पर धरना दिया गया। कांग्रेस का आरोप है कि शहीद नीरज थापा द्वार से बाजावाला तक सड़क निर्माण व कौलागढ़ में सीवर-लाइन के विषय पर नगर निगम देहरादून ने पिछले 15 वर्षों से क्षेत्र की अनदेखी कर रखी है। धरना-प्रदर्शन कार्यक्रम के अध्यक्ष वरिष्ठ कांग्रेस नेता अभिनव थापर ने कहा कि नगर निगम देहरादून में पिछले 15 साल यानी 2008 से भाजपा का ही मेयर है और 35 साल से इस क्षेत्र में भाजपा का विधायक है किंतु कौलागढ़ की इन समस्याओं पर आजतक किसी ने समाधान करने का प्रयास नहीं किया। अगर जल्दी ही क्षेत्र की समस्या पर सरकार ने कोई कार्यवाही नहीं करी तो कांग्रेस सरकार को जगाने के लिए जमीनी स्तर पर ऐसे और संघर्ष प्रदर्शन करेगी। कांग्रेस ने निगम के होर्डिंग के 300 करोड़ के खेल का पर्दाफाश किया है और अब कांग्रेस ही देहरादून के आमजन की समस्याओं के लिये सरकार को जगाने हेतु जमीन पर संघर्ष रही है। धरना प्रदर्शन में कार्यक्रम अध्यक्ष अभिनव थापर, महानगर कांग्रेस अध्यक्ष डॉ जसविंदर गोगी, विजय प्रसाद भट्टाराई, विनोद जोशी , घनश्याम वर्मा, अभिषेक तिवारी, ताराचंद, लक्की राणा, कुंवर सिंह आदि ने विचार रखे और कार्यक्रम का संचालन विजय भट्टाराई ने किया।
जिसने अपने मन पर ‘विजय’ पाई, वही वास्तविक विजेता हैः भारती
देहरादून। प्रत्येक रविवार की भांति आज भी दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान की देहरादून स्थित निरंजनपुर शाखा के आश्रम सभागार में दिव्य सत्संग-प्रवचनों एवं मधुर भजन-संर्कीतन के कार्यक्रम का विशाल स्तर पर आयोजन किया गया। सद्गुरू श्री आशुतोष महाराज जी की शिष्या तथा देहरादून आश्रम की प्रचारिका साध्वी विदुषी जाह्नवी भारती जी ने अपने उद्बोधन मंें उपस्थित संगत के समक्ष ‘मन’ के क्रिया-कलापों पर प्रकाश डालते हुए बताया कि मन प्रत्येक मानव को संचालित करने का महती कार्य किया करता है। वास्तव में मन कोई शरीर का एैसा भाग जैसे हार्ट, किडनी, लीवर अथवा लंग्स इत्यादि की तरह का कोई अंग नहीं है और न ही इसकी इन अंगों के ईलाज की तरह कोई चिकित्सा ही है। मन तो अनन्त विचारों का, अंतहीन भावनाओं का एक समूह मात्र है। मन ही मनुष्य को पूर्णता प्रदान किया करता है और यही मन मानव को अद्योगति की ओर भी अग्रसर कर देता है। मन मानव का मित्र भी है और यही मन उसका एक बड़ा शत्रु भी है। यह मन तभी तक शत्रु है जब तक इस मन को साधने वाला कोई पूर्ण महापुरूष मनुष्य के जीवन मंे नहीं आ जाता और उसे इस मन रूपी हाथी पर नियंत्रण करने वाला दिव्य अंकुश ‘‘ब्रह्म्ज्ञान’’ प्रदान नहीं कर देता। मनुष्य को सदैव अपने मन में उठने वाले विचारों पर दृष्टि रखनी चाहिए कि कहीं मन का ज्वारभाटा उसे मँझधार में ही डूबो न दे इसलिए मन की समस्त गतिविधियों पर सावधानी पूर्वक दृष्टिपात करते हुए इसे निरन्तर सकारात्मक भोजन परोसना चाहिए। मन का तो स्वभाव ही है कि इसे नकारात्मक कुविचारों रूपी गरिष्ठ भोजन ही भाता है। इसकी इच्छा के विपरीत इसे निरन्तर आध्यात्मिक सकारात्मक खुराक देते जाते रहने पर यह फिर कुछ समय पश्चात इन्हीं का आदि हो जाता है और तदुपरान्त इसे इसका मूल समझ आ जाता है तथा फिर यह पूर्णरूपेण ईश्वरमय होकर सध जाता है, जीव को भव से पार लगा दिया करता है। साध्वी जी ने बताया कि मन की अद्योगामी त्रासदी पर कबीर साहब तो यहां तक कहते हैं- ‘‘मन के मते न चालिए मन पक्का यमदूत, ले जाए दरिया में जाए हाथ से छूट’’। वास्तव में इस संसार में वास्तविक विजेता वही है जिसने अपने मन पर विजय प्राप्त कर ली। कहा भी गया- ‘मन जीते, जगजीत’। मन की जीत ही विश्व विजय की धोतक है।