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अधर में लटक गया शासन का तबादला आदेश

सचिव के फैसले से हैरान पंचायतीराज महकमा

देहरादून। पंचायती राज विभाग इन दिनों ऐसे कई फैसलों को लेकर सुर्खियों में है, जिन्हें नियम कानून के विपरीत माना जा रहा है। ताजा मामला अधर में लटके उन ग्राम पंचायत विकास अधिकारियों के तबादले से जुड़ा है, जिन्हें शासन ने बिना निदेशालय की जानकारी के ही स्थानांतरित कर दिया। चौंकाने वाली बात यह है कि पंचायती राज विभाग में ग्राम पंचायत विकास अधिकारी जिला कैडर के पद हैं और स्थानांतरण आदेश में इन्हें एक जिले से दूसरे जिले में तैनाती दे दी गई। उधर इस आदेश के जारी होने के बाद पंचायती राज विभाग में अधिकारियों के बीच हड़कंप की स्थिति बनी हुई है। हालांकि पंचायतीराज सचिव हरिश्चंद्र सेमवाल के इस आदेश के बाद निदेशक पंचायतीराज निधि यादव ने स्थानांतरित किए गए अधिकारियों को निदेशालय में अटैच करने के आदेश जारी किए हैं।
पहले पंचायतीराज सचिव हरिश्चंद्र सेमवाल के ग्राम पंचायत विकास अधिकारियों को दूसरे जिलों में स्थानांतरित करना और फिर निदेशक निधि यादव द्वारा इस आदेश को नियम विरुद्ध बताते हुए इस पर रोक लगाना शासन और निदेशालय के बीच की खींचतान को बढ़ा रहा है। हालांकि जो तथ्य निदेशालय स्तर पर रखे गए हैं, उससे सचिव पंचायती राज हरिश्चंद्र सेमवाल के तबादले से जुड़े आदेश नियमों से उलट दिखाई दे रहे हैं। निदेशालय स्तर पर लिखे गए पत्र से स्पष्ट है कि शासन के इस निर्णय से न केवल नियमों का उल्लंघन हुआ है, बल्कि इससे जिला स्तर पर संबंधित पद में रोस्टर भी प्रभावित होगा। इतना ही नहीं कुछ जिलों में स्वीकृत पद के सापेक्ष तैनात अधिकारियों की संख्या भी अधिक हो जाएगी।
इन्हीं स्थितियों को देखते हुए निदेशालय पंचायती राज ने शासन के आदेश पर एक बार फिर विचार करने के लिए कहा है। एक महत्वपूर्ण तथ्य यह भी है कि पंचायती राज सचिव ने ग्राम पंचायत विकास अधिकारियों के ताबड़तोड़ तबादले आचार संहिता लगने से ठीक पहले किए। पंचायती राज सचिव हरिश्चंद्र सेमवाल द्वारा किए गए इन तबादलों के पीछे की वजह को जानने के लिए सचिव के कार्यालय में भी उनसे मिलने पहुंची, लेकिन उनसे मुलाकात नही हो पाई। वहीं, दूसरी तरफ शासन स्तर पर जिला कैडर के अधिकारियों को दूसरे जिले में स्थानांतरित करने के बाद सूची में शामिल अधिकारी भी असमंजस में आ गए हैं। हालांकि लोकसभा चुनाव के चलते आदर्श आचार संहिता लागू है, लेकिन 6 जून को आचार संहिता समाप्त होने के बाद इसपर कोई बड़ा फैसला होना संभव है।

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