
अयोध्या में राम मंदिर के बहाने सांस्कृतिक जागरण भी हो रहा है और अगर हम इसकी परिक्रमा कर रही सियासत को भूल जाएं, तो भारत के पौराणिक दर्शनों में कई किंवदंतियां साक्षात होती दिखाई देती हैं। यह अयोध्या में अयोध्या नहीं, बल्कि राम की गाथा में भारत के दर्शन हैं। यही परंपराएं अयोध्या से हिमाचल का ऐतिहासिक, सांस्कृतिक व सियासी रिश्ता भी जोड़ती हैं। कुल्लू में विराजित भगवान रघुनाथ की अपनी विशिष्ट परंपराओं में अयोध्या के कदम, भगवान राम की विजयी पदचाप और लोक संस्कृति में राम का महात्म्य सुनाई देता है। देव परंपरा के कई राम और राम के चरित्र बिंदु समाज को सचेतन व शासक को उसकी मर्यादा सिखाते हैं। अगर गौर से देव परंपरा को देखें, नियमावली-शब्दावली और रिवायतों को समझें तो यहां समाज का पालक भगवान है और सांस्कृतिक संरक्षक भी देव परंपरा है। यहां आदेश फरमाते देवता और लोकतांत्रिक मूल्य बताते गूर भी मिल जाएंगे। मौसम का हाल सुनाते, सृष्टि पर देव दृष्टि का फलक सजाते और पारंपरिक रिवायतों में फर्ज निभाते समाज को अगर हिमाचल के नजरिए से देखें, तो राम यहां का चारित्रिक उत्थान देव परंपरा का आख्यान है। हिमाचल से अयोध्या के रिश्ते और मंदिर की प्राण स्थापना को लेकर उत्साह नहीं, बल्कि अनुभूतियां भी हैं। भाजपा के पालमपुर राष्ट्रीय अधिवेशन में राम मंदिर निर्माण का प्रस्ताव अपने चौतीसवें वर्ष में एक पताका बनकर मौजूद है, तो याद करना होगा कि उस समय के नेता इस समय कहां हैं। दूसरी ओर कुल्लू, रघुनाथ मंदिर अपनी परंपराओं में बसे राम की पादुकाएं अयोध्या रवाना कर चुका है, तो इस ऐतिहासिक क्षण के चरम बिंदु पर हिमाचल के आंचल पर लिखी गई रामायण और महाभारत का वृत्तांत भी होना चाहिए।
हिमाचल की देव संस्कृति में झांक कर देखेंगे तो एक पल राम, एक पल कृष्ण, एक पल बौद्ध बनते अशोक, ज्योतिर्लिंग तथा दुर्गा शक्ति पीठ दिखाई देंगे। इतना ही नहीं कई ऐतिहासिक गुरुद्वारे, गुरु की नगरियां और प्राचीन मठों में ज्ञान के कई अद्भुत स्रोत मिलेंगे। ऐसे में महेश्वर सिंह जिस भाव और परंपरा के पुरुषार्थ को लेकर राम मंदिर पहुंचे हैं, वहां हजारों सालों से रघुनाथ मंदिर का आशीर्वाद भी देश के सामने है। कुल्लू का दशहरा इसी राम जी के अस्तित्व की परंपरा को लेकर अपना रथ खींच रहा है, लेकिन देश की भक्ति अब राष्ट्र भक्ति है, इसलिए परंपराएं नवजीवन धारण कर रही हैं, वरना हजारों सालों से राम लला अगर कष्ट में थे तो रघुनाथ जी कुल्लू में इस दूरी को समझ रहे थे। कहने का अर्थ यह कि देश में पैदा हो रही सांस्कृतिक चेतना से जिस तरह के धार्मिक पर्यटन का उदय हो रहा है, उसे देखते हुए हिमाचल की देव संस्कृति को भी निखारा जाए। अयोध्या के लिए अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट अब अगर हकीकत है, तो कांगड़ा एयरपोर्ट के धार्मिक महत्त्व से इसका विस्तार सुनिश्चित होना चाहिए। इससे आसपास के प्रमुख मंदिरों के अलावा बौद्ध सर्किट बनाने में मदद मिलेगी। राम मंदिर निर्माण के बाद रघुनाथ मंदिर को भी अगर इसकी पौराणिक मान्यता के अनुरूप विस्तार दिया जाए, तो यह स्थल न केवल दर्शनीय हो जाएगा, बल्कि कुल्लू दशहरा उत्सव का आभामंडल बदल जाएगा। जिन्होंने दशहरा उत्सव देखा होगा या इसके अभिप्राय में राम के आचरण को महसूस किया होगा, वे जरूर जानते होंगे कि पहाड़ी देवताओं के समागम में हिमाचल की संस्कृति देश की थाती बन जाती है। यहां संगठित देव संस्कृति को अगर देश तवज्जो दे, तो असली भारत की रामायण यहां नजर आएगी और महाभारत भी। देव ग्रंथों, वेदों, उपनिषदों के तमाम ज्ञान स्रोत जहां-जहां ईश्वर को पुकारते हैं, वहां हिमाचल के कण-कण में प्रमाणित होते देवता चले आते हैं। अतरू राम अयोध्या को पुकार रहा है, तो रघुनाथ जी देश को हिमाचल में पुकार रहे हैं।